
“ईश्वर,अन्धकार में भी जगमाता है,
दिये की सार्थकता ईश्वर से है, ईश्वर कि दिये से नहीं।
प्रेम का जीवन से ऐसा ही सम्बन्ध है।”
कवितायेँ कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाती हैं। कभी कभी लगता है, गर बातें पन्नों पर लिख एक दूसरे को बतलायी जाएँ तो शायद हम उनकी गम्भीरता और भाव को ज्यादा अच्छी तरह समझ पाएंगे।
“पिया रे तुलसी मैं हो जाऊं” एक ऐसा ही खूबसूरत कविता संग्रह है। स्पष्ट, सटीक और बिलकुल मुद्दे पर रहते हुए, ‘प्रहेलिका’ द्वारा लिखी गयी यह किताब आज के सामाजिक जीवन, उनके वक्त के साथ बदलते रिश्तों, देश में फैली कुरीतियों पर एक गहरी चोट करती है। कवयित्री अपनी इन्ही आधुनिक कविताओं से पाठकों पर एक गहरी छाप छोड़ती हैं।
इश्क़ तो आजकल सब करते हैं मगर प्रेम करना इतना आसान नहीं होता। प्रेम, असल में प्रेम सिर्फ ढाई अक्षर का शब्द नहीं पूरा जीवन ही इसी एक शब्द में निहित है। यहाँ कवयित्री ने अपनी कविताओं के माध्यम से आधुनिक समय में प्रेम की बदली परिभाषा को अपने शब्दों के ज़रिये व्यक्त किया है। सिर्फ पुरुष या सिर्फ स्त्री से नहीं बल्कि दोनों के सामंजस्य से ही प्रकृति चलती है। ऐसे ही इस जीवन की संरचना हुई है, फिर क्यों हम इस गलतफ़हमी में रहते हैं किसी एक को कम आंकने से हम ऊपर हो सकते हैं।
राष्ट्र, गांव, मिट्टी,शहर की भाग दौड़ ऐसे ही विभिन्न विषयों को प्रहेलिका ने बेहद खुबसुरती और बखूबी से शब्दों में पिरोया है। जैसे, गावों को अक्सर गरीबी से आंकते हैं लोग, की वहां सुख सुविधाओं की कमी होती है। भूल जाते हैं कि उन्ही छोटी झोपड़ियों में आज भी अपनापन मिलता है वहीँ बड़े शहरों की बड़ी इमारतों में रहने वाले लोग सब होकर भी अकेला सा महसूस करते हैं। यह कविता संग्रह पढ़ आप भी सोचने पर मजबूर होंगे की हम अपने जीने के तरीकों, सोच और समाज में क्या कुछ बदलाव ला सकते हैं।
शब्दों का प्रयोग, उनके भाव समझाने में कवयित्री सफलतापूर्वक खरी उतरी हैं। हमें हिंदी साहित्य के ऐसे ही प्रतिभावान लेखकों और उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तकों को और प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। अगर आप भी हिंदी भाषी हैं और एक अच्छे कविता संग्रह की खोज में थे तो यह किताब बिलकुल आपके लिए है।
Rating: 4/5 ⭐️⭐️⭐️⭐️