“रुकना नहीं है हमें यहाँ.. चलते जाएं ये आसमां ले जाए जहाँ ।”
तारे, बंजारों की चाह में, कृतिका अग्रवाल द्वारा लिखित यह पुस्तक उनके विचारों और शायरियों का संग्रह है। कृतिका ने बखूभी अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोया है। यहाँ कवियत्री की लेखनी प्रशंसा योग्य है, उन्होंने सरल शब्दों को बेहद दिलचस्प रूप में पेश किया है। आज कल के मॉडर्न शब्दों का प्रयोग कर उन्होंने इसे एक नया आयाम दिया है, यह लेखनी हमारी युवा पीढ़ी को अपनी ओर आकर्षित करेगी। एक अच्छी बात यह है की जहाँ भी उर्दू शब्दों का प्रयोग हुआ है वहां उसका अर्थ साथ में बताया गया है जो बहुत ही सराहनीय है इससे पाठक को भावार्थ समझने में आसानी होती है। कवियत्री अपनी किताब के माध्यम से बेहद जरुरी बात बताना चाहती हैं की जीवन में जो भी मुश्किल आये हमे हमेशा समय और परिस्तिथि के साथ आगे बढ़ते रहना चाहिए।सामान्य मानव के जीवन के हर पहलु को छूती है यह किताब, वो बचपन के दिन, माँ की बातें, वो लड़कपन वाले किस्से, वो प्यार का सुनहला एहसास, वो रोज वाली गपशप आदि बहुत ही सरलता से पेश किये गए हैं। पढ़ते हुए आपको बहुत बार ऐसा एहसास होगा मानो ये किस्सा आपके साथ भी हुआ हो और सही मायनो में आप कवियत्री के विचारों के साथ समर्थन महसूस करेंगे। छोटी पर मोटी बातों से भरी यह किताब सभी के लिए है, हिंदी पाठक तो इसे पढ़ें ही पर अग्रेंज़ी पाठक भी इसे पढ़ सकते हैं, जैसा की कवियत्री ने कहा है- “अंग्रेज़ो की अँग्रेज़ी पर इतराते है , देश की बोली “हिन्दी” से ही हिचकिचाते है ! दोनो बोलो , दोनो बोलने में बुराई है क्या ? तो फिर क्यूँ सिर्फ़ हिन्दी से ही शरमाते है !”
Rating:4/5 ⭐️⭐️⭐️⭐️
Book review: Taare , banjaron ki chah me
